"ग़ज़ल"
"सिर्फ तेरे ना होने से मैं कलाकार हो गई।
तजुर्बेकार इतना कि सलाहकार हो गई।।
तुम बिन देख कर अकेले राह में मुझे,
मुश्किलों कि हम पर भरमार हो गई।।
डटकर मेरा चट्टानों से टकराना और।
कामयाबी भी मेरी तलबगार हो गई।।
लिख लिख कर दर्द-ए-ग़म जुदाई की,
आज देखो मैं एक रचनाकार हो गई।।
ख्वाबों में भी सताने लगी तुम्हारी बेरुखी
और घर में मच्छरों की फौज तैयार हो गई।।
सिर्फ तेरे ना होने से मैं एक मिसाल बन गई।
देख मेरे हौसले को बेवफाई भी शर्मसार हो गई।।"
अम्बिका झा
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