स्वरचित रचना
किधर रहते हो है कहाँ ठिकाना तुम्हारा।
छुपाओ न कुछ भी,करीब याराना हमारा।
गुस्सा भी तुम्हीं से है चाहत भी तुम्ही से।
है सभी से अनमोल ये दोस्ताना हमारा।
नही तुमको भुला न कभी भुला पायेंगें।
कोशिश भी करेंगे तो शायद मर जाएंगे।
तुम बिन हम जैसे हो कोई कटी पतंग।
है रिश्ता न पल का, बहुत पुराना हमारा।
प्रकाश कुमार मधुबनी'चंदन'
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