डॉ विनोद शकुचन्द्र जी द्वारा खूबसूरत रचना#गुफ्तगू#

मैंने आज खुद से ही गुफ्तगू की है
खुद से मिलने की बस आरजू की है

जख्मों से छिल गई,दिल की जमीं
गमगीन जज्बातों से मैंने रफू की है

चमन ने छोड़ दिया महकना अब
हवाओं के हवाले खुशबू की है

वो गिरा है ऊंचाई से बेशक यहाँ
जिसने,ज़्यादा की जुस्तजू की है

ये कोन है मेरे अंदर मेरे जैसा
जिसने मेरी भूमिका हूबहू की है

डॉ विनोद शकुचन्द्र

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