तुम्ही समझो तुम्हारे जज़्बात क्या हैं
मुझे तोल रहे हो,समझदारी से तुम
तुमने बताई मुझे दिल हर बात क्या है
कुर्सियों का खेल चल रहा है बस यहाँ
फर्क नहीं पड़ता आवाम के हालात क्या है
मेरे नाम से मुझे पहचाना जाता है यहां
कोई सोचेगा कभी,मेरे ख्यालात हैं क्या
अंधे हो गए हैं सब,उसे ही मानते हैं सब
हकीकत से परे हैं सब,खुराफात हैं क्या
डॉ विनोद शकुचन्द्र
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