*शीर्षक - *छत्रपति शिवाजी महाराज*
( जन्म जयंती पर कोटि कोटि नमन)
उन्नीस फरवरी सन् सोलह सौ तीस ....
मानो शिव स्वयं प्रकट हुए थे , शिवनेरी में शिवा स्वरूप कर्तव्य परायण
हर्षित अपार हुए थे शाहजी भोंसले पिता महान ,अरु माता जीजाबाई धर्म परायण
शिवाजी नाम था निर्गत लक्ष्य ,बाण प्रत्यंचा का
जो चुन चुन कर वध करता था ,धरती के गद्दारों का
वह अपने में आक्रोश भरे था अलौकिक, महाकाल का
प्राकट्य वना था मुगल साम्राज्य के, अकाल काल का
वीर शिवाजी ने देश प्रेम की अनुपम ,ज्योति जलाई थी
मराठों में देशहित मर मिटने की ,असीमित शक्ति जगाई थी
हर हृदय में हिन्दुत्व का गौरव , स्वाभिमान भरा था
एक मराठा हजारों दुश्मन पर भारी है ,ऐसा विश्वास भरा था
बोध वाक्य हर नारी में ,माॅ॑ का दर्शन अभीष्ट था
सम्यक निर्णय युद्ध कौशल, और प्रबन्धन समीष्ट था
वह छापामार युद्ध शैली का ,कार्तिकेय सा नन्दन था
जिस में शौर्य पराक्रम अद्भुत , रणनीति का मंथन था
समर्थ गुरु रामदास का शुभाशीष , सदैव साथ था
हृदय मन विचार में संपन्न ,सुसंस्कृत ,गौरवशाली भारत था
जैसे घोर तिमिर ठहर सके नहीं क्षण एक ,समक्ष मार्तंड
जैसे कुठार परशुराम समक्ष ,ढह जाते सहस्त्रबाहु भुजदंड
जैसे मृगराज समक्ष छुप जाते हैं , द्रुम दंड मध्य मृगझुंड
वैसे ही क्षत्रपति शिवाजी महाराज समक्ष , क्षार क्षार हुआ था औरंगजेब घमंड
तीन अप्रैल सन् सोलह सौ अस्सी , हिंदु पद पादशाही के अरुण का अवसान हुआ
हम सब के जन नायक हृदय सम्राट , वीर शिवाजी का देदीप्यमान अमर इतिहास हुआ
जय शिवाजी जय भारत
चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
(ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
अहमदाबाद, गुजरात
अहमदाबाद , गुजरात
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