होइए अवतरित बुद्ध#रीतु प्रज्ञा जी द्वारा खूबसूरत रचना#

*होइए अवतरित बुद्ध*

होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
है अशांत ये लोभ की दुनिया,
रोता है मुन्ना,रोती है मुनिया।
भटक रहा स्वछंद अंगुलीमाल ,
कर रहा नष्ट अहं में जानमाल।
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
बढ रहा है घमंड का ज्वाला,
धू-धू जल रहा सहस्त्रों आला।
मूक दर्शक बने खड़ा है मानव,
रही न हिम्मत,देख कृत्य दानव।
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
प्रेम की निर्मल गंगा बहाने आइए,
दिलों को जोड़ने का मंत्र पढाइए,
हे साधक ! सुन लीजिए पुकार,
करता है  सकल लोक गुहार।
होइए अवतरित फिर से बुद्ध।
कीजिए पापियों का हृदय शुद्ध।।
              रीतु प्रज्ञा
        दरभंगा, बिहार

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