शशिलता पांडेय#महात्मा बुद्ध#कविता#

अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच
दिवस-सोमवार
दिनांक-16/5/2022
विधा-काव्य,पद्ध
विषय-महात्मा बुद्ध
    महात्मा बुद्ध
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जब जब धर्म घटा धरती पर
सम्पूर्ण मानवता पशुता से हारी।
पुनः सत्य-ज्ञान का मार्ग दिखाने।
हुए अवतरित प्रभु संसार मे बन अवतारी।
जन्म-मरण के दुख से मुक्ति दिलाने।
प्रभु महात्मा बुद्ध बने लेकर मानव तनधारी।
वैसाख पूर्णिमा को हुआ जन्म
लुम्बनी में गौतम गोत्र शाक्यवंशधारी।
नाम पड़ा सिद्धार्थ,थे जनक राजा शुध्दोदन।
माता महामाया देकर जन्म स्वर्ग सिधारी।
मौसी महाप्रजावती ने किया लालन-पालन।
लाड़-प्यार भरपूर दिया बनकर महतारी।
एकलौते लाड़ले पुत्र पिता थे राजा शुध्दोदन।
सुख-सुविधा की नही कमी सम्पन्नता थी भारी।
बाग- बगीचा सेवक,मनोरंजन,भौतिक सुविधा सारी।
रास-रंग कभी बाँध न पाए अंतर्मन में द्वंद था जारी।
पिता ने बाँधा सोलह की उम्र में उनका परिणय बन्धन।
अतिसुन्दर गुणवान भार्या यशोधरा थी सुकुमारी।
मोह-ममता में बँध न पाए चले सत्य साधक बन।
छोड़ पत्नी यशोधरा पुत्र राहुल को त्याग किया भारी।
दिव्य सत्य की खोज में जहाँ मुक्त हो जीवन-मरण,
मोह त्याग राज-पाट का वन-वन भटके योगधारी। 
वर्षो की कठिन साधना रखा सम्पूर्ण विश्व भ्रमण जारी।
विश्व में घूमकर मुक्ति मार्ग खोज में भटके दुनियाँ सारी।नीचे बैठे थे पीपल वृक्ष के लगाकर अपना ध्यान।
बुध्दपुर्णिमा को बिहार के बोधगया में हुआ प्राप्त ज्ञान।
सिद्धार्थ बने महात्मा बुद्ध जिन्हें कहते अवतारी भगवान।
वह पीपल का वृक्ष जिसे बोधिवृक्ष का मिला सम्मान।
बौद्ध भिक्षुओं का बढ़ा प्रसार,शिष्य राजा-महाराजा महान।
सम्राट अशोक का शास्त्र त्याग बौद्ध धर्म प्रचार में  योगदान।
 बौद्ध भिक्षुओ के लिए,बौद्ध संघ की स्थापना को मान।
महात्मा बुध्द ने कुछ संकल्पनाओं का प्रसार धर्म सनातन।
अग्निहोत्र गायत्री मंत्र,अंतर्दृष्टि ध्यान मध्यम मार्ग का अनुसरण।
चार आर्य सत्य अष्टांग मार्ग इत्यादि बतलाया महात्मा बुध्द ने उपदेशों में जीवन में खुशी की प्राप्ति के मार्ग,
मत उलझो भूत-भविष्य में जीने की आदत डालो बर्तमान।
उन्होंने कहा कि क्रोध की कोई सजा नही बल्कि क्रोध सजा देता है।
 देश-विदेश तक फैले अनुयायी मानवता सिखलाई बौद्ध-धर्म ने,
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिलता पांडेय
 बलिया उत्तर प्रदेश

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