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कविता
*जल अमृत*
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मात-पिता,
भारत माँ..
धरा नमन।
हितकारी,
जन-जन का..
करें वंदन।।
जल अमृत,
जानत सब..
पहल करें ।
दुरुपयोग,
करने से..
संकट बढ़े।।
जल महिमा,
चरणामृत.
समझाकर।
सब समझें,
ऐसा जतन..
अपनाकर।।
बारिश जल,
जाये अब..
ना बहकर।
घर-घर में,
*पुनर्भरण*
बनाकर।।
©®
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)
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