सादर समीक्षार्थ
आधार - सगणात्मक दोहे , चारों चरण में सगण
सृजन शीर्षक - सलिला
सलिला सबसे पूछती , क्यों करते ये काम ।
दूषित मुझको जो करे, उसका गंदा नाम ।।
पावन सलिला तो सदा , हरती सबकी पीर ।
खुशियाँ सबको बाँटती , रहती है गंभीर ।।
यमुना सलिला है सदा , पावन इसके तीर ।
राघव ढूँढ़े राधिका , हरते सबकी पीर ।।
सलिला गंगा आज भी , देती सबको नीर ।
पावन सारे धाम हैं , बसते इसके तीर ।।
सलिला मेरी मात है , करती मुझसे प्यार ।
कहती सबसे है सदा , जीवन का ये सार ।।
डॉ . राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
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