मेरा प्यारा गांव

विधा =कविता 
शीर्षक =मेरा प्यारा गांव

 शहर से दूर है मेरा गांव
गांव में मिलती निर्मल ठंडी छांव|
 जब हम नानी के गांव
 जाते थे|
 पेड़ पर हम चढ़ जाते थे
 अमरुद तोड़ हम खाते थे|
 नानी गाय का दूध निकालती थी
 मिट्टी के बर्तन में हमें दूध पिलाती थी |
पेड़ों पर झूला जब हम झूले ,
मेरा मन अंबर में डोले |
 गांव में एक स्कूल है 
पढ़ते बच्चे जिसमें अनेक हैं |
गांव में एक आदमी आता था |
भालू का नाच दिखाता था
 जब सब खुश हो जाते थे
 ताली जोर जोर से बजाते थे |
 नानी के साथ खेत में जब हम जाते थे |
फिर घास काट के घर ले आते थे जब,
गाय को प्यार से खिलाते थे
 जब बारिश होती थी|
फिर मेंढक घर में आ जाता था |
पीछे हम उसके भाग जाते थे फिर
मेंढक के साथ खेलते थे |
 नाना खेत में ट्यूबवेल जब चलाते थे  
 फिर होदी में नहाने हम
 डूब जाते थे |
 नानी मिट्टी के चूल्हे में
 रोटी बनाती थी 
सिलबट्टे मैं चटनी बनाती थी |
मटका सिर पर रखकर छाछ का
 खेत में ले आती थी |
खेत में नाना खेती कर जब थक जाते थे 
फिर सब साथ में बैठकर रोटी खाते थे |
जब सबने नानी का खाना खाया 
सबको बहुत मज़ा आया |
 गांव में एक चौपाल था जिसमें हम खेल खेला करते थे |
जब हम थक जाते थे 
घर जाकर सो जाते थे |

पूजा सैनी 
नई दिल्ली

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ