एक वो भी वक्त था

एक वो भी वक्त था
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एक ये भी वक्त है एक वो भी वक्त था
बस जीवन जीने - जीने में अन्तर था
आदमी को आदमी से कितना हेत था

पानी अब आदमी व जीवों को सुलभ है 
वो भी वक्त था जब लोग पानी को तरसते
पानी को घी की तरहा काम में लेते थे

आज अनगिनत कपड़े पहनते हैं लोग
वो भी वक्त था जब एक ही कपड़ा 
फट नहीं जाता था तब तक पहनते थे

आजकल बड़ों का मान-सम्मान कहाँ ?
वो भी वक्त था जब बड़ों से सब डरते थे
घर के मुखिया की छत्र छाया में रहतेे थे 

आज आवागमन के साधन भी सुलभ हैं 
वो भी दिन थे जब पैदल कोसों चलते थे
ऊँट-बैलगाड़ी यातायात के साधन होतेथे 

आज पंखे - कुलर - ए सी गरमी मे चलते
एक वो वक्त भी था घास - फुस की पंखी 
छत व खुले मे चैन से सब सोया करते थे

आज संचार के साधनों की भरमार है 
एक वो वक्त था तब महिनों लगते थे
तब जाकर कुछ सुख-दुख जान पाते थे

अब भव्य शादी समारोह में फिजूल खर्च
एक वो वक्त न डैकोरेशन न बैंड- स्टाल 
हलवा-लाफसी जिमण जमी पे बैठ खाते 

आज बेटी पर गिध सी बुरी नजर सब की तब गांव की बेटी सब जात धर्म की बेटी 
वो वक्त था जब ब्लात्कार शब्द नहीं था

आज कई मंजिल की पक्की भव्य बिल्डिंग
वो वक्त था जब झोंपड़ी- कच्चे मकान थे
उन इंसानों के किरदार व ईमान पक्के थे 

आज के बच्चों के खिलोनों की भरमार
एक वो वक्त था मिट्टी के संग ही खेलना
याद आते हैं वर्षा से भीगी मिट्टी के लड्डू

फलों से सजी व बिस्कुट टॉफ़ी की दुकाने
एक वो वक्त था कहाँ थे ये सारे तामझाम
चने -बीज -बेर ,जेब में इमली केभुने बीज

आज सब कुछ संसाधन सुख सुविधाएं है 
वो वक्त था जब जेल व अस्पतालें नही थी
लोग निरोग व अमन चैन से जिया करते थे
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स्वरचित / मौलिक रचना
रचनाकार:-मईनुदीन कोहरी
" नाचीज बीकानेरी "
बीकानेर , राजस्थान मो 9680868028
Badlavmanch

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