सावन की फुहार

बदलाव अंतरराष्ट्रीय-रा
शीर्षक-" सावन की फुहार "
चहक  उठी है धरती बरसे सावन की फुहार
झूम उठा आसमान गायें सब मिलके मल्हार
महक उठा अपना आँगन और घर बार
देखो सखी होने लगी सावन की बौछार

सखियाँ सारी झूला झूले विरहन रोये जार-जार
कजरी गाये झूमर गाये डाल बाहों का हार 
पिया मिलन की आस में गोरी करे इंतजार 
न जाने कब आएगा पिया मिलान का त्यौहार

दादुर भेंको बजाएं टर्र-टर्र करें बार-बार 
बगुले उड़े गगन में बांध के अपनी कतार 
मछलियां भी दौड़ पड़ी बनाके अपना हार 
प्रेमी भी जतलाने लगे अपनी प्रेमिका से प्यार 

किसान भी ठीक करने लगे खेत की आर
प्रकृति भी खिल गई पा के अपना गुलनार 
सज-संवर के दुल्हन खड़ी भई घर के द्वार
आएंगे साजन आज लेके कोई अच्छा सा उपहार 

कहीं घुंघरू की आवाज कहीं पायल की झंकार 
सावन का महीना आया लेकिन खुशियां हजार
पर्वत झूमे जंगल खिले नदियाँ करें किलकार
सावन पर कविता लिखने का मौका मिला इसबार

शिवशंकर की पूजा करे सब दिन हो सोमवार 
दिनेश देवों के देव महादेव का नाम लो तुम यार 
मनोकामनाएं वही पूरी करेंगे पार्वती जिसकी नार 
बदलाव मंच के सब कवि गण करें ये चमत्कार

दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
रचना मेरीअपनी मौलिक रचना है।

Badlavmanch

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