दिनांक:-08-07-2020
विषय:-प्रेम
विधा:-कविता
शीर्षक- वतन के प्रेमी हैं हम
वतन के प्रेमी हैं हम।
दुष्ट दृग फोड़ देते हैं हम।।
सिसकियाँ माँ भारती की बर्दाश्त नहीं,
शत्रुओं को यहाँ आने की इजाजत नहीं।
वतन के प्रेमी हैं हम।
औंधे मुँह गिराते हैं हम।।
नित्य करते हैं हम राष्ट्र वंदन,
देश की माटी हैं अमूल्य चंदन।
वतन के प्रेमी हैं हम।
रक्षार्थ कार्य करते हैं हम।।
कमर कसे हैं मातृभूमि रखेंगे सदा आजाद,
जयकारा से गूंजायमान करते रहेंगे आकाश ।
वतन के प्रेमी हैं हम।
एकता डोर बाँधते हैं हम।।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
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