नमन बदलाव साहित्य मंच
दिनांक -08/07/2020
विषय - प्रेम
विधा -दोहे
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दोहे
प्रेमी पागल प्रेम में ,जैसे जल बिन मीन ।
पिय मिलन में रे मना ,पल-पल हो लवलीन ।।
प्रीत -रीत में रे मना ,नाही नेम दिवार ।
प्रियतम आगे जीत ना ,लगे सुहावन हार ।।
प्रेम पिपासा रह मना ,छोड लोक -परलोक ।
लघु लागत सच प्यार में ,त्याग तपस्या योग ।।
पिया मिलन हो प्रेम सुख ,मनवा बेपरवाह ।
पाप पुण्य गुण दोष का ,कहीं न लागे थाह ।।
प्रेमातुर बिन मांग ही ,मन चाहा पा जाय ।
विषय ना वाणी का यह , भावों में प्रगटाय ।।
प्रेम हरि बिन और कहीं ,चट अनहोनी होय ।
प्रेम डगर अति सूक्ष्म है ,जिस पर चले न दोय ।।
सर्वोपरि है प्रेम -पथ ,इसका आदि न अंत ।
सर्व सम्मत सुप्रीत से ,मिले सहज ही कंत ।।
प्रेम कटारी धार का ,प्रेम अटल विश्वास ।
प्रेम प्लावित परमात्मा ,चलत प्रेम ही स्वांस ।।
प्रेम सु उपमा प्रेम है ,परिभाषा भी प्रेम ।
अलंकार भी प्रेम का ,जान मना बस प्रेम ।।
पावन परम पुनीत है ,प्रेम प्रभु का धाम ।
प्रेम प्यासा पहुँचेगा ,सच कवि बाबूराम ।।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला-गोपालगंज (बिहार)मो0नं0-9572105032
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On Sun, Jun 28, 2020, 8:24 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
मुक्तक********************1सेवा त्याग जो रहता सत में ।विचलित नहीं होता आफत में ।सर्व भला देश हित में तत्पर -मानव वही महान जगत में ।2माँ चरण में तीर्थ - धाम वसे ।मन चंगा में श्रीराम वसे ।जो पीर पराई हर लेवे -उसके मन राधे श्याम वसे ।3पी जहर भी अधर मुस्कात रहे ।आपसी प्यार सहयोग साथ रहे ।भूल से भी होजा गलती कबो -माफीहेतु झूकल हरदम माथ रहे ।4प्रश्न बहुत पर हल क्या होगा ?छल -कपटों का फल क्या होगा ?हरि विधान से डर ए मानव -किसे पता है कल क्या होगा ?5सत्य में झूफ गरल क्या होगा ?मन में स्वार्थ मल क्या होगा ?प्यार एकता त्याग से रिता -शान्ति सुख अचल क्या होगा ?*************************बाबूराम सिंह कविOn Thu, Jun 25, 2020, 2:20 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिताविषय-काव्यात्मक कथादिनांक -25-06-2020दिन -गुरुवारविषय मुक्त ,विधा -कविताशीर्षक-मानव जीवन कथा*************************मानव जीवन सर्वोपरि है सर्व सम्मत से ,किसी पर कथा में यह ऊँचाई हो नही सकती ।सुचिता सच्चाई से बडा़ कोई तप नहीं दूजा ।सत्संग बिना मन की सफाई हो नही सकती ।।मानव जीवन जबतक पूरा निःस्वार्थ नही बनता ,तबतक सही किसी की भलाई हो नही सकती ।परमार्थ परहितमय कदम आगे बढा़ अपना ,सत्कर्म कर जड़ में रसाइ हो नही सकती ।अन्दर से जाग भाग पाप दूराचार से ,सतज्ञान बिन पुण्य की कमाई हो नही सकती ।परमात्मा और मौत को रख याद सर्वदा ,यह मत जान की जग से विदाई हो नही सकती ।अज्ञान में विव्दान का अभिमान मत चढा़ ,किसी से कभी सत की हँसाई हो नही सकती ।बन आत्मा निर्भर होशकर आलस प्रमाद छोड़ ,आजीवन तेरे पर से पोसाई हो नही सकती ।काम कौल में फँसकर न कृपण बनो कभी ,सदा दान बिन धन की धुलाई हो नही सकती ।देव ऋषि पितृ ऋण से उऋण होना है ,वेदज्ञान बिन इसकी भरपाई हो नही सकती ।राष्टृ रक्षा जन सुरक्षा में सतत् निमग्न रह ,बिन अनुभव कर्मो की पढा़ई हो नही सकती ।शुभकर्म सत्यधर्म वेद ज्ञान के बिना ,बाबूराम कवि तेरी बडा़ई हो नही सकती ।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -खुटहाँ ,पोस्ट-विजयीपुरजिला -गोपालगंज (बिहार )पिन-841508मो0नं0-9572105032====================On Tue, Jun 16, 2020, 3:08 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:बदललाव मंच साहित्यिक प्रतियोगिता"सावन में लग ग ई आग " विधा -हास्य कविता*************************16जून दिन-मंगलवार====================सावन में लग ग ई आग सत्य विचलीत हुए भोर की तलाश कर रहा है ,त्याग और राग निज स्वार्थ में उन्नती की आश कर रहा है ।सावन का महीना था ,रिमझीम बारीस हो रही थी कि -एक अजीब नवजान ब्यक्ति एक रोज अचानक मेरे घर पर आया बहुत जोरो से दरवाजा खटखटाय मै कुछ लिख रहा था कुछ सिख रहा था पर छोड़कर फौरन आया दरवाजा खोला और बोला क्यों भाई क्या बात है?उसने रुआसा आवाज मे कहा हमारी हालत देख लीजिये सुना है आप कवि है अच्छा खासा कमा लेते है दानी सवभाव के दयालु व्यक्ति है जो मांगने आता है उसे कुछ न कुछ अवश्य देते है मेरी बातो मे कोई त्रुटि हो तो उसे माफ कीजिये साहब कम से कम मुझे एक सौ रूपये दीजिये मैंने कहा पैसा किस काम मे लगाओगे कैसे और कब तक हमारे पैसे लौटाओगे वह बड़े ही दृढ़ स्वर मे बोला साहब ! पैसा से शराब पियूँगा, मांस खाऊंगा किसी की जेब काट कर आप के पैसे किसी न किसी दिन अवश्य लौटा जाऊंगा मै कभी झूठ नहीं बोलता, साहब सत्यवादी हूँ बुरा ना मानियेगा, माई बाप पाकिट मारी और सराब का आदि हूँ |-----------------------------------बाबूराम सिंह कविग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )जिला-गोपालगंज ((बिहार )मो0नं0-9572105032Email= baburambhagat1604@gmail.comOn Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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