फूल की किस्मत को क्या कहूँ बया क्या करूँ हाल ।

फूल की किस्मत को क्या कहूँ
बया क्या करूँ हाल ।

बड़े गुरुर में सूरज की पहली
किरण के संग खिली इतराती
बलखाती मचलती गुलशन
बगवां की शान।।

फूल के सुरूर का गुरुर भी लम्हे
भर के लिये बागवाँ माली ही उसे
उसके जिंदगी के डाल से जुदा कर देता।।

किसी और को सौंप देता फूल की
किस्मत के इम्तेहान का दौर शुरू
होता।।

डाली का साथ छुटते ही अपनों
से बेगाना होते ही सुबह देवो के
सर पर बैठती साध्य साधना आराधना के पथ उद्देश्यों में
खुशबु बिखेरती ।।

देवों के शीश पर बैठ मानव के
मन्नंत मुराद की उम्मीद फूल।

सुर बाला की गहना बनती महफ़िलों की रौनक प्यार मोहब्बत की महफूज मकसद
मंजिल की ख़ास फूल।।

गजरे में गुथी जाती माले में पिरोई
जाती गुलदस्ते में जकड़ी जाती
हर वक्त जगह मुझसे ही दुनियां
में खुशियाँ आती।।

बहारों में महबूब के आने पर बरसती वरमाला पसंद का
परवान जमीं आकाश मैं
बनती।।

रात की गली सुबह फूल बन
कर खिली सुबह से शाम तक ना
जाने कितने इम्तेहान से गुजरती।

हर किसी  की खुशियों का साझीदार बनती शाम ढलते
पैरों से रौदी जाती ।                 

मेरी हर
पंखुड़ी से आवाज आती हे
ईश्वर काश मैं फूल न होती।।

मैं श्रद्धा की अंजलि हूँ मुझे
हाथ में लेकर इंसान जीवन
रिश्तों के भावों का करता
दुनियां में करता इज़हार।।

मैं वियोग विछोह के दर्द
संबंधो  की  अंजलि श्रंद्धांजलि हूँ।

अर्थी के महत्व जीवन का
सच जैसे मैं डाली से टूटती
वैसे मानव के बिछुड़ते रिश्तों
की क्रंदन मैं फूल निश्चिन्त
भाव और निश्छल हूँ।।

मुझे भी अपने दुनियां में
होने का होता गर्व 
जब मातृ भूमि के कर्म
धर्म पर मर मिटने वाले
की राहो की बन जाऊं मैं
धुल फूल।।

तब मैं खुद पे इतराती दुनिया
को बतलाती मेरा हर सुबह
चमन में खिलना मेरी हस्ती
की मस्ती है ।।                        

बन जाऊं शहीदों
के कफ़न की शोभा बीर सपूतों
की गौरव गाथा की सच्चाई मैं फूल।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी  पीताम्बर

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