बदलाव साहित्य मंच
दिनांक--30-07-2020
दिन- गुरुवार
शीर्षक- वन रक्षण
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★★स्वरचित रचना★★
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धरती अपनी माता जैसी,
पुत्र का फर्ज निभाना हैं|
वन उपवन माता के गहनें,
लटने से इन्हें बचाना है।
मार कुल्हाडी काट पेड़ को,
मानव धन कुछ पा जाता हैं |
लालच में अंधा होकर वह,
अपना ही पांव कटाता हैं |
बाढ़ अकाल बे मौसम वर्षा,
मौसम चक्र बदल जाता हैं |
हरकर धरती की हरियाली,
अपना विनाश खुद लाता है |
वन ही में रहता वनवासी,
वन से ही जीवन पाता है |
लोभी भू माफिया से लड़,
वन का रक्षक कहलाता है।
मीठा शहद मीठे फल का,
स्वाद भी हमें चखाता हैं |
वन औषधि ओर कंद मूल,
वनवासी हम तक लाता है।
वनवासी को शिक्षा दे रमेश,
वन का विकास यदि करतें हैं,
देकर उसको कुछ अधिकार,
वन का रक्षण कर सकते हैं |
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नाम-रमेश चंद्र भाट
पता-टाईप-4/61-सी,
अणुआशा कालोनी,
रावतभाटा।
मो.9413356728
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