नारी को भी समान अधिकार

नारी को भी समान अधिकार 
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नारी है नारायणी जननी जगत जीव की ,
सबहीं की गुरु सारी सृष्टि की श्रृंगार है ।
जननी की जननी भी नारी की विशेषता है ,
महिमा नारी की सदा अगम  अपार है ।
जननी बहिन बहु बेटी धर्मपत्नी बन ,
सुखद बनाती सदा घर परिवार है।
आदर सत्कार मान "कवि बाबूराम  "कर ,
औरत के बिना सही नहीं विस्तार है ।

करुणा की सागर व ममता की मूरत है ,
प्यार व दुलार स्नेह श्रध्दा की सार है ।
सेवा सिरमौर सुख -दुख संगिनी है नार ,
निज सुख वार बच्चों की पालनहार है ।
औरत अनुप अर्धांगिनी है जन -जन की ,
सब कुछ में उसका आधा अधिकार है ।
बच्चा बूढा़ जवान सब पै "कवि बाबूराम "
नारी का सच अनगिनत उपकार है  

जलती क्यों आज बहु बेटी दहेज हेतु ,
पुरुषों के साथ क्यों बेबस लाचार है ।
जिस घर देश में अपमान होत नारी का ,
निश्चित नरक नाश वहां तैयार है ।
सोचिए विचारिए सुधारिए स्वयं को सभी ,
नारी को भी जीने का समान अधिकार है ।
करता जो नर नारी निन्दा अनादर नित ,
"कवि बाबूराम "वह वसुधा का भार है ।

नर का आधार अमोल प्यार नार जग में ,
नर भी नारी का सुख सार व सुहाग है ।
अनबन नोक झोक बेकार नर नारी में ,
कटुता कपट आपस बिच अभाग है ।
छोड़ के अनीति अत्याचार अपमान घोर ,
आपसी बढा़ना नित राग -अनुराग है ।
होवे नर -नारी जब एक "कवि बाबूराम "
भरता जीवन में सुख शान्ति सौभाग्य है ।

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा )
जिला -गोपालगंज (बिहार )
पिन -८४१५०८
मो०नं०-९५७२१०५०३२
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प्रकाशनार्थ

On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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