**हर दिल है दुखी**
हर दिल में देखा गम, हर एक का दिल है दुखी
ब्रह्मांड तक गई ढूंढने, ना मिला मुझको कोई सुखी।
एक जोर से हंसते हुए, इंसान को पूछा मैंने
हंसते हुए इंसान की दर्द से, आंख ना उठ सकी।
चंदा के पास की गई मैं, चांदनी मांगने उधार
है यह सूर्य की, सोच, शर्म के मारे आंख उसकी झूकी।
सूरज ने भी एक दिन ,आकर सपने में सुनाई व्यथा
थकता हूं चाहता हूं आराम, किरणें मेरी ना रुक सकीं।
समुद्र देवता की भी थी, अपनी दुख भरी कहानी
चाहता हूं करूं मैं भी भ्रमण, हूं नहीं मैं इतना लकी।
ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,चोटियां भी पका रहे दुख भरी रोटियां
काट देते हैं मेरी ही बाहें, न रह सकी मेरी चोटियां ढकी।
झरने की मधुर तान में भी था बहुत गहरा दर्द भरा
गंदगी का लगा के ढेर, तुम भी ना उसको रोक सकी।
हवाएं लेआती तूफान,देना चाहती जब गमों का फरमान
चंद नोटों की खातिर काले धुंए को,सरकार न रोक सकी
पशु पक्षी सब हुए हैं बेघर, भटक रहे भूखे दर् दर
लालच की भूख में जंगल के वृक्ष, काट दिए सभी।
इस गम और दुख की और क्या क्या सुनाऊं व्यथा
आने वाली नई पीढ़ी, हो रही हमसे भी ज्यादा दुखी।
कल्पना गुप्ता/ रत्न
Badlavmanch
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