*ग़ज़ल*
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वक़्त आज हम को हमारा मिला है
डूबते को तिनके का सहारा मिला है
इक वबा आई और बर्बाद हो गए हम
बंजारों सा साहिल का किनारा मिला है
पास रहकर भी 'अपना' नहीं यहां कोई
आसार-ए-क़यामत का ये नज़ारा मिला है
हुकूमत मुफ़लिसों को इमदाद करेगी
खबरों में हाकिम का इशारा मिला है
सियासत परवान चढ़ रही है ग़ुरबत पर
उम्मीद का यह आखिरी सहारा मिला है!!
-मोहम्मद मुमताज़ हसन
टिकारी, गया, बिहार
Badlavmanch
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