हाड़ मांस का ये पुतला,कितने जोर लगाता है,

हाड़ मांस का ये पुतला,
कितने जोर लगाता है,
मृगतृष्णा के मिथक तलाश मे,
चहुँ ओर भटकता जाता है,
झूठी शान से सराबोर होकर,
लोलुपता के अथाह दलदल मे,
दिन ब दिन धंसता ही चला जाता है,
सत्य की तेज को ढांपकर,
स्वांग का भस्म लगाता है,
निज से निजात के चक्कर मे,
व्यर्थ की धुनि रमाता है,
परमेश्वर ने दिया है जीवन,
भिज्ञ होकर मुहमांगी कीमत लगाता है,
जीवन के अंतिम पडा़व पर,
स्मरण अतीत बड़बड़ाता है,
राम नाम ही एक सहारा है,
सबको यकीन दिलाता है,
काल चक्र के पूर्ण चक्कर मे,
खुद को दोषी ठहराता है,
शय्या के लंबी आगोश मे,
सो जाने से घबराता है,
सत्यम की बातों का सत्यापन,
पंक्तियों मे सत्य उकेरता जाता है,
हाड़ मांस का ये पुतला,
क्यों मिथक जोर लगाता है???
*डॉ सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया*
 *डायरेक्टर आयुस्पाईन हास्पिटल दिल्ली*

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