नमन गुरु जी
लख लख नमन
ऐसे गुरुओं को
जिन्होंने ज्ञान का
दीपक थाम लिया
जो मजबूर और लाचार थे
उनको भी आगे बढ़कर
जीवन में ज्ञान दिया
जीवन संघर्षों में गुरु
किसान बन जाते हैं
मेहनत कर सींचे
बिचरों को तभी तो
हर क्षेत्र में बेहतर
फसल बनकर लहलहाते हैं
नहीं लोभ गुरु को
होता दीक्षा भिक्षा की
बीज है बोते
सींचते स्नेह से
मीठे फल स्वंय
वो कहां खाते हैं
कच्ची मिट्टी सा मन
निराकार हो जाता है
पाकर गुरुजी से ज्ञान
सुंदर पात्रों में ढल जाता है
सही गलत का भेद बताए
ऊंच-नीच का पाठ पढ़ाएं
गुरु ही जीवन की नैया को
मांझी बनकर पार लगाए
लोहा जैसे अपना जीवन
पारस जैसे गुरु को छूकर
कुंदन बन जाता है
गुरु बिन ज्ञान
मिलता है कहां
जीवन यह बेमानी है
गुरु सम्मुख जब आए
तो ज्ञान दीपक
जल जाता है
गुरु का ऋण कभी
चुका न पाएंगे
गुरु संपूर्ण ब्रह्मांड है
श्रद्धा और आदर से
करते हैं नमन
सदा हृदय बस जाते हैं
गुरु के चरणों में
शीश झुकाते हैं
लख लख नमन
ऐसे गुरुओं का
जो ज्ञान की
अलख जगाते हैं।
रजनी शर्मा चंदा
रांची झारखंड
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