दुःख....एक करुण व्यथा



दुःख..... एक करुण व्यथा

दर्द एक आँसू बन चला

यूँ ही कविता का रूप
धारण कर चुका हैं।
कुदरत का यही तोहफा मिला मुझे
जिसे ना चाहकर भी कुबूला मैंने
क्या गलती थी मेरी?
बस चंचलता ही तो था बालपन का,
कितनी बड़ी सजा दी विधाता तूने;
एक आँख तो छीन ली,
साथ ले गयी विद्वत्ता भी।
सिर्फ दसवीं पास बनकर रह गया।
बहनों ने कमाल दिखाया
 और अपने-अपने घरों में चली गई।
बूढ़े मा-बाप का इकलौता सहारा हूँ मैं
क्या कोई लड़की नही जिसे मैं पसंद हूँ?
मैं परछाई ही सही,वो सूरत बने मेरी।
वो उड़ान भरे ऊचाइयों में
और किनारे बंधु मैं उस डोरी के।
क्या कोउ ऐसी मूरत नही,
जो कुबूल करें मेरी सच्चाई की सूरत को?
क्या कोई बड़भागी नही ,
जो अपनाये मुझ अभागे को?
क्यों दहेजलोभी, बेरोजगार पसंद हैं?
मैं मेहनत कर दो जून की रोटी
और पूर्व स्वतंत्रता-संग स्वीकार करूँगा तुम्हे।
-सोनम कुमारी(झारखंड)

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