कवि भास्कर सिंह माणिक कोंच जी द्वारा 'अराजकता' विषय पर कविता

मंच को नमन
विषय- अराजकता

सदियों से
अराजक तत्व
पालते रहे
अराजकता
लेकिन
हर समय 
हुई लज्जित
अराजकता

कभी नहीं किया चिंतन
कभी नहीं किया मनन
कुदाल 
कभी नहीं बनता कुंदन
लोग देखते हैं शूल को
सदा कुदृष्टि से
कोई नहीं करता सम्मान
अमर बेल का
अपना मान होता है
और अपने पोषक का
भय से विजय नहीं मिलती
डर डरता रहा सदा
हर काल में
हुई है पराजित
अराजकता

उठाकर ग्रंथ पढ़ लो
हुआ है ध्वंस
आततायी का
झुकना पड़ा
सत्य के सम्मुख
नम्रता के आगे
विशाल सिंधु को भी
छोड़ना पड़ा
घमंड को
क्रूरता को
अपना मार्ग
सरलता के सम्मुख
श्रद्धा लगन शीलता 
होती है कर्मठ की पहचान
सच्चे श्रमिक को देते हैं राह पहाड़
पल पल
हुई है लज्जित
अराजकता
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच

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