मंच को नमन
चलें
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खाई ईर्ष्या की हम पाटते चलें
सौगात प्यार की हम बांटते चलें
कदम से कदम हम सब मिलाकर चलें
एकता अपनी हम सब बनाकर चलें
राह आ करके पूछे हमसे पता
अपने सद्भाव हम सब दिखाकर चलें
प्रीति के गीत हम गुनगुनाते चलें
खाई ईर्ष्या की हम पाटते चलें
मंदिर मस्जिद के झगड़े छोड़े हम
रिश्ते सद्नेह के आओ जोड़े हम
बैर में होती है विध्वंस की गति
कुरीति की रूढ़ियां मिलके तोड़े हम
रूठे स्वजनों को हम मनाते चलें
खाई ईर्ष्या की हम पाटते चलें
अपनी संस्कृति का सम्मान करें हम
दोस्तों वतन का उत्थान करें हम
करो सर्वस्व निछावर अपने देश पर
माणिक मातृभूमि का मान करें हम
एकता का दीपक हम जलाते चलें
खाई ईर्ष्या की हम पाटते चलें
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक,कोंच
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