⛳ *स्वतंत्रता का नायक* ⛳
*मैं राष्ट्र भक्त हुँ मैं जाति का आलोचक हूँ।*
*मैं सनातन धर्म का पुजारी अटल साधक हूँ।।*
*मैं समरांगण में रणभेरी से फिर विनाश करूँ।*
*मैं सूर्य की प्रतिछाया नव धवल उजास भरूँ।।*
*मैं मानव धर्म लिए सत्य मार्ग का पथिक बना।*
*श्रीरामकृष्ण गौतम नानक वचन प्रतीक बना।।*
*मैंने धर्म साथ लिए रण में विजय ध्वजा फहराई।*
*भारत माता को बेरि दल से लड़कर मुक्त कराई।।*
*मैंने संस्कारों की खानों से उचित संस्कार लिए।*
*मैंने शिवशंकर के जैसे लँकाभेदी के जहर पिए।।*
*मैंने अपनी सुरक्षा में दूसरे को कष्ट दिया नही।*
*मेरी मर्यादा मैनें आद्य प्रहार किसी पर किया नही।।*
*शपथ याद मुझे है अब तक रणभूमि के गाथा की।*
*रक्षा करने चल पड़ा हुँ भारत भाग्य विधाता की।।*
*मैं महाराणा प्रताप चेतक चंचल मन का उदय भान।*
*मैं हर-जगह पर लड़ता रखता भारत भूमि का ध्यान।।*
*मैंने कब माना कि मैं निमित मात्र उसका अधिकार हूं।*
*मैं तो जगत जननी भारत माता की अमर ललकार हूं।।*
*मैंने इस कोने से उस कोने पूरे भारत को सम्मान दिया।*
*जब मैं लड़ता भूमि पर नहीं मैंने कोई अपमान किया।।*
*कब तक तुम को समझाऊँ मैं अमृत माटी की गाथा को।*
*शत शत् नमन करना आता हुँ भारत भाग्य विधाता को।।*
*इस भू की रचना करने ऋषि-मुनियों संतों ने जाप किया।*
*अंग -अंग का अर्पण कर भारत भूमि पर संताप किया।।*
*मैंने निशा निराशा के बादल पर अक्षत फूल चढ़ाया है।।
*कितनी ही माता बहनों ने निज हाथों से सिंदूर मिटाया है।।*
*यूं तो हम भी निकले हैं मातृभूमि की सेवा करने को।*
*बहना की राखीं सुनी है हम चले सर्वश्व अर्पण करने को।।*
जो मेरी संस्कृति का परिचायक में उसका उज्ज्वल भाल।
मैंने अमृत का किया पान में भारत माता का अमर लाल।।
*नमस्ते सदा वात्सले भूमि मैं मन प्राणों से लड़ता हूँ।*
*तेरे अमृत दूध की शक्ति अरिदल की छाती पर चढ़ता हुँ।।*
*जब-जब भी रणभूमि में मां मुझको याद तेरी आई है।*
*कंठ सुख गया तो मैने शत्रु के शौणित से प्यास बुझाई है।।*
*दुनिया मुझको पुजे न चाह मेरी मेरा उपकार न रहे।*
*कि तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहे।।*
*(कृपया सावधान रहें रचना रजिस्टर है ,चौरी का प्रयास न करें)*
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_कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी_
_राजगढ़ धार म.प्र._
*(८४३५४४०२२३ , ७९८७००८७०९)*
Badlavmanch
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