*श्री कृष्णा जी*
🙏साकार अब हो जाओ......
भय से गायें रंभा रहीं हैं ग्वाल बाल सखियां सभी बुला रही हैं
अब भी अघासुर बकासुर कंस पूतना मानवता को सता रही हैं
हे देवकीनंदन वासुदेव साकार प्रकट फिर से हो जाओ
व्यथित हो रहे सभी हैं उल्लास की मुरली मधुर बजाओ
विध्वंसों के जो बजा रहे वाद्म हैं सम्मुख उनके पांचजन्य बजाओ
सुयोग्य पार्थ लाओ फिर से तुम सारिथी बन कर आ जाओ
विषैले नागों को नथ कर हम सबको मुक्ति दिला जाओ
तुम मेरे राग विराग हास सांस रोम रोम में रम जाओ
उपवन वन वीरान जन जन की चेतना में रम जाओ
बूंद सरिता सागर धरा गगन के कण कण में समा जाओ
अणु रूप है तुम्हारा बन कर विराट हम में समा जाओ
अरूप हो तुम असीम रूपवान हम सब के रूपों में समा जाओ
सुख दुःख यातना संघर्षों में हम में ही समा जाओ
फिर हम विष पान भी कर लेंगे लेकर नाम तुम्हारा
तुम हो यही है अभिमान मेरा नाम है कन्हैया तुम्हारा
करुणा करो कृपा निधान अब साथ दो हमारा
त्रिभुवन में दूजा न कोई हमारा बस है सहारा तुम्हारा
भय से गायें रंभा रहीं हैं ग्वाल बाल सखियां सभी बुला रही हैं
अब भी अघासुर बकासुर कंस पूतना मानवता को सता रही हैं
हे देवकीनंदन वासुदेव साकार प्रकट फिर से हो जाओ
जग महाव्याधि से जूझ रहा तुम अब व्याधि विनाशक हो जाओ
🙏 जय श्री कृष्णा 🙏
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"अहमदाबाद घोषणा करता हूं कि उपरोक्त कविता मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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