*परिंदा और नारी*
परिंदा और नारी,दोनों की स्थिति
है एक समान
दोनों को किया जाता है घर में
नजरबंद
उन्हें सब समझते हैं तुच्छ वस्तु
के समान ।।
जिस प्रकार परिंदा चाहता है
पिंजड़े से बाहर निकलना
उसी प्रकार नारी भी चाहती है परिंदे की भाँति बाहर उड़ना।।
मनुष्य के समान ही
परिंदे में भी है जान
कोई नहीं समझता इसे
केवल करता है मानवता का बखान ।।
जिस प्रकार परिंदा अनेको यत्न
के बाद भी अपना जीवन
पिंजड़े में नष्ट कर देते हैं
वैसे ही नारी समाज में
अपना वर्चस्व बचाने के लिए
अपना जीवन त्याग देती है।।
क्यूँ भूल गया है इंसान
परिंदा भी है मनुष्य के समान
उसे चाहिए पिंजड़े से मुक्ति
वह भी भर सके जी भर कर उड़ान।।
वापस भेजो उस परिंदे को
जहाँ है उसका उचित स्थान
जीवन में खुश रहना है
तो सदैव करो,
परिंदे और नारी का सम्मान।।
*काजल सिंह*
*पश्चिम बंगाल बर्दवान*
1 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर प्रतुति है। हम लोगो से आशा करते है कि इस कविता को पढ़ कर आने अंदर इसी तरह का विचार को लाये। ताकि सभी लोग सन्ति से अपना जीवन यापन कर सके।��������
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