🌾भक्त वत्सल श्रीराम 🌾
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सूर्यवंशी सूर्यके अवलोकि सुचरित्र-चित्र ,
तन-मन रोमांच हो अश्रु बहि जात है।
सुखद-सलोना शुभ ,सदगुण दाता प्रभु ,
नाम लेत सदा भक्त बस में हो जात है।
नाम सीताराम सुखधाम पतित -पावन ,
पाप-ताप आपोआप पलमें जरि जात है।
पामर पतित अरू पातकी अघोर हेतु ,
सेतु बनी तार बैकुण्ठ को ले जात है ।
नेम तार नरकिन के होत ना विलम्ब नाथ,
शरणागत आपही अधम के लखात हैं।
तरो कुल रावन पतित पावन श्रीराम,
दियो निज धाम आप स्वामी तात मात है।
गणिकाअजामिल गज गिध्द उबारो नाथ,
सुनी आरत पुकार नंगे पांव दौडि आत है ।
आप हर वेष,देश,काल में कमाल कियो ,
भक्त हेतु खम्भ से नरसिंह बन जात है।
धन्य अवध राजा -रानी दरबार कुल ,
धन्य श्रीराम विश्वमित्र संघ जात है ।
राक्षस संहार और अहिल्या उध्दार करी ,
तोड़ के पिनाक टारे जनक संताप है ।
कैकयी कृपासे घर छोडे सत्य कृपासिन्धु,
विप्र ,सुर,धेनु हेतु छानत पात-पात है।
धीमर से प्रीति -रीति खाये शबरी के बेर ,
प्रेम प्रधान में ना भेद जात- पात है ।
कृपा के सिन्धु करी कृपा सभी पर सदा ,
निज पद , रूप दे के सदा मुस्कात है।
कण-कण केवासी अघनासी सर्वत्र आप,
निज में निहारने से आपही लखात है।
भगवन सदा ही हृदय में बिराजो नाथ ,
निज में मिला लो बस इतनी सी बात है।
सन्त प्रतिपाल बान रूप को ध्यान करि ,
अपनालो "कवि बाबूराम " बिलखात है ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज ( बिहार )
मो0नं0 - 9572105032
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