**************************
मेरे देश की स्वर्णिम धरती की,
जग में अद्भुत शान निराली है।
मस्तक पर मुकुट हिमालय-पर्वत ,
शोभा लगती बड़ी मनोहारी है।
पाँव पखारे जिसका विस्तृत सागर,
गोद मे बहती गंगा मतवाली है
प्राकृतिक सौंदर्य अलंकृत धरती,
अपनी माता भारती हमारी है।
कंचनजंघा की चोटी से सूरज,
की आभा दिखती सिन्दूरी है।
बोली यहाँ है भाँति-भाँति के,
अलग -अलग प्रान्त की भाषा है।
अलग-अलग है धर्म यहाँ पर,
सबकी अलग-अलग परिभाषा है।
बीरभूमि है उन अमर सपूतो की,
भारत की धरती शूरवीरो की माता है।
रामकृष्ण ,महावीर,बुद्ध की पावन ,
पवित्र धरती ही भारत-माता है।
पुरुषोत्तम राम,रामायण,महाभारत की,
युगों से यह धरती पावन एक गाथा है।
शून्य से सम्पूर्ण यही के सफल-शोध की,
गाथा सारा विश्व प्रेम से गाता है।
बसा जहाँ स्वर्ग सम्पूर्ण-धरा का,
"कश्मीर" वह अदभुत देश हमारा है।
जहाँ रंग-बिरंगे ऋतुओं के संग त्योहारों,
का रंग अनोखा औऱ मतवाला है।
जहाँ झूम-झूम मिलकर गातें होली,
जगमग दीवाली का रंग निराला है।
अन्नपूर्णा है धरती मेरे देश की ,
पराये देश का पेट भी पाला है।
मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे,
यही धर्म -अभिमान है हमारे
अपनी परंपरा अपनी संस्कृति,
शान है अपनी देश की धरती।
💐समाप्त💐 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका-शशिलता पाण्डेय
0 टिप्पणियाँ