घूँघट


जनकवि प्रकाश कुमार मधुबनी की जनवादी व्यंग्य रचना 

*साहित्य में पुरुष होकर महिलाओं के नाम से एकल छद्म नौटंकी संगठन चलाने वालों को जनकवि प्रकाश जी की ओर से जोरदार तमाचा*

घूंघट उठते ही 
भेद खुलना तय है।
तमाशा करने वालों का
 तमाशा होना तय है।।
इसलिये घुँघट में रहने दो।
अन्यथा पर्दा उठने से 
बेशर्मियाँ बेहद होना तय है।।

घुँघट के सहारे ही
 कई का जीवन चलता है।
औरत के भेष में कायर
 मर्दो का पेट पलता है।।

इसलिए कहता हूँ 
मतभेद हो जाएगा।
इसलिए ये पर्दा रहने दो।
ये जीवित है मरकर 
इन्हें ऐसे ही रहने दो।।

जहाँ औरतों का ये जेवर है
वही धूर्त का आश्रय व 
कोई पुराना तेवर है।।

इनको सामने लाकर 
अपनी शांति ना मिटाओ 
ये कायरता में खुश है 
इन्हें कायर ही रहने दो।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ