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श्रुति स्मृति शास्त्र उपनिषद वेदों का यह अनुपम सार।
परोपकार प्रभुभक्ति सत्यनिष्टा पथ पावन है आत्म सुधार।
आत्म सुधार से ही आती वाणी मन व्यवहार में एकता।
वेदज्ञान संयम निष्ठा से सत्याचरण नर सदा टेकता।
मन जागृत निर्मल पावन हो प्रभुमय ही जग को देखता।
सदगुणों का समावेश हो मिटता मै मेरा अनेकता ।
अंकुरित पल्लवित पुष्पित हो तब लहराता है पावन प्यार।
परोपकार प्रभुभक्ति सत्यनिष्ठा पथ पावन है आत्म सुधार।
भक्ति तीर मूल लक्ष्य वेध का आत्म सुधार बनता कमान।
सुख -दुख उत्कर्ष हर्ष सब कुछ हो जाता एक समान ।
मन सुस्थिर लगन भाव से करता है हरि -हरि का गान ।
आत्म सुधार के चरम कूल पै स्वतः प्राप्त होते भगवान।
जीवन सुलभ सरल रीति से हो जाता भवसागर पार ।
परोपकार प्रभुभक्ति सत्यनिष्ठा पथ पावन है आत्म सुधार।
गति मति प्रगति का दाता पावन वेद व आत्म सुधार।
इसी के बल पर कैवल्य पद को पाया है पाता संसार।
आत्म सुधार भक्ति से मिलता है नारायण का प्यार ।
भक्तों का निज जीवन पर इसी से होता है अधिकार।
जन्मान्तर का मैल साफ कर जन जन को यह देता तार।
परोपकार प्रभुभक्ति सत्यनिष्ठा पथ पावन है आत्म सुधार।
आत्म सुधार कर रत्नाकर कवि बाल्मीकी कहलाये ।
तुलसी सूर कबीर दयानन्द इसी से गौरव पाये ।
कोटिक जन सफल हुए सम्भव कहाँ नाम गिनायें।
संत ऋषि सर्व शास्त्र इसे ही सर्व श्रेष्ट बतलाये ।
जन्म सुफल कर "बाबूराम कवि "यथाशीध्र कर आत्म सुधार।
परोपकार प्रभुभक्ति सत्यनिष्ठा पथ पावन है आत्म सुधार ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज ( बिहार)841508
मो0नं0 - 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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