बिहार के कवि राजीव रंजन जी की शानदार रचना#बदलाव मंच


यूं हमें हर रोज आजमाया न करो

छोटी सी जिंदगी है इसे जाया न करो,
रोज-रोज झूठी क़समें खाया न करो ।

प्यार करती हो तो भरोसा भी रखो मुझपर,
यूं हमें हर रोज आजमाया न करो ।

इतनी जल्दी होती है तुम्हें जाने की,
इससे अच्छा है कि तुम आया न करो ।

एक बिजली सी कौंध उठती है मेरे तन-मन में,
कसकर अपने सीने से लगाया न करो ।

इश्क़ किया है तो खुलकर इजहार करो,
दिल-ही-दिल में इसे दबाया न करो ।

की है मुहब्बत तो लड़ लेंगे जमाने से,
मुहब्बत के दुश्मनों से घबराया न करो ।

ख़्वाबों में भी तू ही तू नजर आती है,
मुझे नींद में ही रहने दो जगाया न करो ।

झील भी मदहोश है तेरे बदन की खुशबू से,
हर रोज उसमें नहाया न करो ।

नाज़-नखरे, शर्म-ओ-हया ये नारी के गहने हैं,
इसे अपने पास रखो गँवाया न करो ।
©️✍नादान कलम (राजीव रंजन गया,बिहार)

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