🌷कहानी भविष्य की🌷
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जन्म-जन्म से मानव तेरी,
चलती आई एक कहानी।
जब-जब धरती पर घटा धर्म,
तब हुई सम्पूर्ण विश्व की हानि।
मानव ने जब सृष्टि को छेड़ा,
तब कुदरत ने किया बखेड़ा।
स्वप्निल भविष्य कुछ अपना देखा।
सृजन करके विध्वंसक विस्फोटक,
तुम भूले प्रकृति की मर्यादा- रेखा।
बाढ़ की विनाश लीला महामारी,
डोल रही अब धरती सारी।
एक तरफ कहर कोरोना ने डराया,
ये तो है सब योगेश्वर की माया।
तब भी इंसान तेरे समझ न आया,
प्रकृति ने प्रतिघात निभाया ।
जिसको तुमनें निर्बल समझा,
कहा कुदरत ने,मानव तू थम जा!
जब-जब धरा पर आई आंच,
कहा प्रकृति ने,,मानव अब तू नाच!
देकर कठोर निग्रह वो बोला!
मैंनें जीवन तेरा सरल बनाया,
नेमत सौपी देकर मानव- काया।
सुन्दर सृष्टि का सृजन किया,
मनभावन परिदृश्य सजाकर।
चमके चँदा दूर ब्योम पर,
प्रकाशमान है रोज प्रभाकर।
सरिता गिरती सागर में जाकर,
पर्वत, अरण्य, तरु,पुष्प बनायें।
मधुर पवन और हरियाली से सजायें,
मानव फिर भी नहीँ संतृप्त हो पायें।
अपनी करनी से बाज नहीं आयें,
अपनीं अहमियत बतलानी तो होंगीं।
एक प्रतिकार तो लेना ही होगा,
मुझें दंड इसका देना ही होगा।
💐समाप्त💐 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका:-शशिलता पाण्डेय
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