गुजारिश

बदलाव मंच

4/8/2020

स्वरचित रचना

*गुजारिश* 

किसी गलियों से होकर मैं जाऊ
पर तुम्हारी गलियों से होकर नही जाता हूँ।

बहुत हुआ दिललगी,
फिरसे नही फँसना चाहता हूँ।

आजादी की साँस क्या होती है
 अब ये समझ चुका हूँ मैं।

उन जुल्फों की उलझनों से
 निकलकर सुलझ चुका हूँ।।

अब दुबारा से उलझ गया 
तो फिर ना सुलझ पाऊँगा।

तबतो उबड़ गया मैं अब
 बिल्कुल ना उबड़ पाऊँगा।।

तो इतना काम करना
 तुम अब नजर ना आना।
एक बार छोड़ कर जा चुके हो
अब वापस लौट कर ना आना।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
9560205841

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