कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा 'बच्चों की तोतली भाषा' विषय पर रचना

❤️बच्चों की तोतली भाषा❤️
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बार-बार आती मुझकों ,
मधुर यादे मेरे बचपन की।
वो तुतलाती सी थी भाषा,
वो मीठी बोली भोली सी।
काश! फिर से लौटा दे मेरी,
छुटपन की मस्ती थोड़ी सी।
मन ही मन मे सोच रही मैं,
क्या लौट के बचपन आएगा?
फिर अल्हड़पन और मस्ती!
जीवन का महकता वो सावन,
जहाँ  मिलती खुशियाँ भी सस्ती।
तभी पतझड़ में  बहार मुस्कुराई,
एक नन्ही कली मेरे भी घर आई।
जिन्दगी संग-संग खिलखिलाई,
यू लगा मुझे बहारों ने गीत गाया।
मेरा बचपन फिर से लौट आया,
मेरी गोद मे संग-संग खेलती।
कभी उछलती कभी भरती किलकारी,
नन्हे हाँथों से मेरा स्पर्श कर।
कभी मेरे बालो को मुठ्ठी में पकड़ हँसती,
झूठ-मुठ मैं रो देती, हो उदास।
कर मेरा मुखड़ा ऊपर ,मेरे भाव परखती,
कभी दौड़ती कभी दौड़ाती छुपकर।
मेरे पीछे पल्लू में मुझकों मुँह चिढ़ाती,
खेल-खेल में गीली मिट्टी मे, थोड़ा मिट्टी,
चख लेती, मुझकों भी आमंत्रण देती,
कर कल्लोल-कोलाहल अपनी भाषा मे गाती।
मैं हो आनंदित ईश्वर का शुक्र मनाती,
एक चाँद बिहंसता नभ के ऊपर।
दूज चाँद ज़मी पे खिलखिलाया,
खिले पुष्प सी खिली-खिली वो हँसती।
ऐसे जैसे झंकृत हो पाँवों में एक नूपुर,
दुनिया की सबसे सुखद अनुभूति।
देख मासूम सी बाल-क्रीड़ा,
अम्बर भी बरसायें बूंदो के मोती।
मन के प्रांगण में खुशियों का बचपन,
फिर से झूम-झूम के आया,
घर मे बचपन ने फिर से गीत गाया।
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समाप्त
स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिलता पाण्डेय






  

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