उड़ान
जब भी देखू चार दीवारियो से
उस आजाद पंछी को मैं
कैसे बताऊ अपनी अनुभ
सपनों में खो जाती हूँ मैं ।।
मेरा ये वाबला मन भी पागल
क्या-क्या सपने देख आता
पल भर में जानें क्या सोचता
कहाँ - कहाँ से घूम आता ।।
क्षण-भर के लिए चिड़िया बन ये
पूरी दुनिया मुट्ठी में करती
ऐसे - जैसे सारी सृष्टि
है इसकी व्यक्तिगत अपनी ||
कभी तो ये बादलों में उड़ती
कभी पेड़ों के चक्कर काटती
कभी स्वर्ग से आती - जाती
पूरी दुनिया के फेरे लगाती ।।
फिर जब मेरी सपनें टूटती
असली रूप में आती हूँ मैं
खुदको चार दीवारियो से घिरी
उसी जगह पाती हूँ मैं ।।
सहमी सी परी थी मैं
दिल भी मेरा उदास था
चेहरे भी उतरे हुए थे
जैसे गिरी थी आसमान से मैं ।।
फिर अंदर से आवाज आयी
हो सकता है सपना सच
अगर तुम ये ठान लो तो
खुदकी हौसलों को उड़ान दो तो।।
जा सकते हो तुम भी उस दुनिया
जहाँ ना कोई बंधन ही है
ना किसी का किसी पर अंकुश
जीता सब जिन्दगी आजाद ।।
फिर धीरे से मुस्कुरायी मैं
खुदको स्वर्ग में पायी मैं
खुदसे किया के वादा आज
करुँगी मैं जरूर ये काज ।।
ठान लिया हां ठान लिया
चाहे हो कोई पास-पड़ोसी
या कोई अपने ही मेहमान
मुझे न कोई रोक सकेगा ।।
कहती हूँ चिल्लानकर मैं आज
ए दुनिया सुन मेरी बात
एक दिन ऐसा मैं लाऊंगी मैं
खुदकी रचाउंगी मैं इतिहास ।।
मैं उस हद तक करूँगी कोशिश
अपनी कामयाबी की तुम सुन
मैं मेरी मुँह से ना बोलूँगी
दुनियां करेंगी किस्से मेरे ।।
धमकी न देना अब कोई मुझे
काटने की मेरी पंखों को
अब तो मैंने कसम है खाली
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