किसान....
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करो वंदन~
धरती पुत्र तेरा
अभिनंदन
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स्वेद बहाता~
कड़ी मेहनत से
अन्न उगाता
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मन की पीड़ा~
भीतर ही भीतर
करती क्रीड़ा
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मुस्कुराता है~
अकेला तूफानों से
लड़ जाता है
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कैसा विधान~
भूख से व्याकुल है
आज किसान
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निर्मल जैन 'नीर'
ऋषभदेव/उदयपुर
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