मैं तुलसी तेरे आँगन की# कवियित्री गरिमा विनित भाटिया जी द्वारा बेहतरीन रचना#

''मैं तुलसी तेरे आँगन की''
मैं तुलसी, तेरे आँगन की,
मुझे खिलते ही जाना है ।
आज हूँ मैं तेरे आँगन में ,
कल खुद के आँगन में 
मुझे मेरा रुप दिखाना है ।
मान प्रतिष्ठा से मुझे ,
घर की शोभा बढा़ना है 
मुझे खिलते ही जाना है ।
एक रोज ,नई पत्ति का
उगना जैसा और 
नई सुबह ,बढ़ना जैसा,
खुद का व्यवहार सजाना है।
मैं तुलसी तेरे आँगन की ,
मुझे बढ़ते ही जाना है ।
हो जाऊँ आस हर घर की मैं ,
मुझे वो तुलसी बन जाना है ।
जिस आँगन का व्यक्तित्व 
हो एक तुलसी आँगन की,
वो तुलसी सा अस्तित्व ,
एक घर का बन जाना है ।
मैं तुलसी तेरे आँगन की
मुझे खिलते ही जाना है ।

गरिमा विनित भाटिया 
अमरावती ,महाराष्ट्र 
7409868796

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ