कवि सतीश लाखोटिया जी द्वारा 'समुद्र मंथन ईश्वर आपकी महिमा का' विषय पर रचना

*समुद्र मंथन*

   ईश्वर आपकी महिमा का
   क्या करें हम गुणगान
   आपकी अनेक लीलाओं में
आता समुद्र मंथन का भी नाम

अपनी बिरादरी  को देने साथ
धरा आपने नारी का रुप
उस युग से लेकर
इस युग तक
नारी को ही देखकर लोगबाग 
हो जाते खुशमखुश

बुराई को करने खत्म
लिये आपने कई अवतार
 इंसानियत को ताक पर रखकर
कलयुगी धरा का इंसान
कभी सफेदपोश, कभी लुटेरा
कभी राजनेता बनकर
किये जा रहा अत्याचार

सुना हैं हमने
फिर आप
लेने वाले हो अवतार
करने धरा का उद्धार
हम कर रहे
उसी बात का इंतजार

भीतर से 
इंसान का
मन हो गया 
विष के समान काला
वह तो समझ रहा 
मदिरा को ही
अमृत रूपी प्याला
अब तो यही चलेगा प्रभु
इस धरा पर गड़बड़ घोटाला

समुद्र मंथन का
करे यदि हम
गहराई से चिंतन
 सिखने को 
 मिलेंगा बहुत कुछ
जो काम आएगा 
जीवन में हरदम

अच्छे कर्म करने पर
पाएगें हम जीवन में
अमृत  रस का मिठा प्याला
दिल में रहेंगा
असीम संतोष
यही तो कहती
यह समुद्र मंथन की गाथा

अलौकिक मोहिनी रुप धरकर
समुद्र मंथन से निकाले आपने
कई बहुमूल्य रत्न 
बाँटा  आपने 
 उन वस्तुओं को
सुनियोजित तरीके से
 करने राक्षसों का बँटाधार

मेरी सोच के हिसाब से
समुद्र मंथन का यही सार
हर काम को करो
 मंथन करके
तर्क वितर्क के साथ
हो जाएगीं
 जीवन रूपी
नैया पार

मौज मस्ती से
करेंगे अपना व्यतीत जीवन
यही समझे हम
हमारे लिये 
ईश्वर का दिया हुआ
अमृतमयी उपहार 

सतीश लाखोटिया
नागपुर, महाराष्ट्र

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