सादर समीक्षार्थ
विषय - मोबाइल
विधा - कविता
मोबाइल है बड़ा ही अजब
चस्का है इसका बड़ा गजब
चाय का प्याला लेकर बैठे
सबसे बेखबर होकर बैठे..।।
सुध बुध भी कुछ बची नहीं
दुनियाँ की कुछ खबर नहीं
चाय हुई खत्म कब पता नहीं
मोबाइल से इनको फुर्सत नहीं..।।
ऐसा जाने क्या देख रहा है
किसको संदेश भेज रहा है
या कुछ खास ये पढ़ रहा है
किस दुनियाँ में पहुंच गया है..।।
कोई कुछ कहे बुरा लगता है
जग से नाता भी तोड़ चला है
मैं और मेरा मोबाइल हो बस
घर बार भी छोड़ दिया है..।।
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
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