कवि आकाश अग्रवाल लहार जी द्वारा 'बेटी की अभिलाषा' विषय पर रचना

*बेटी की अभिलाषा* 

आवाज़ निकलने से पहले ही भ्रूण को मिटा दिया;
माँ या बाबा तुम बताओ किस क्रूर ने मिटा दिया!!
आँगन में खेलती तेरे खुशियाँ विखेरती वर्षात सी;
दुनिया देखने से पहले ही दुनिया से मिटा दिया!!


साथ-साथ चलती मैं थाम-थाम बापू हाथ उंगलियां;
रूठती मैं प्रेमभाव से दिला दो खिलौने पुतलियां!!
साख पे ऱखकर घृणा खो जाते तुम सब बात्सल्य में;
देख प्रसन्न मुझे उड़ती चहरे पर प्रेम भरी तितलियाँ!!



खड़ी होती मैं तुम्हारे आन-वान-शान के स्तम्भ पर;
चीरने को छाती शत्रु कूंदती रणभूमि के स्तम्भ पर!!
नाम करती तुम्हारा ऊँचा *आकाश* की ऊंचाई में;
होती छाती चौड़ी माँ-बापू तुम्हारी गर्व के स्तम्भ पर!!

@कवि_आकाश_अग्रवाल_लहार

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