जी लूं तुझको बेहिसाब लिखूं।
तड़पन को भी लिख डालूं,
होकर उसको बेताब लिखूं।
यूँ तो अक्शर हंसता रहता हूँ,
खामोशी किसको दिखलाऊँ।
अब तक सारे कागज़ कोरे,
चलो दर्द की किताब लिखूं।
दर्द कहीं तू मिल जा अबकी,
जी लूं तुझको बेहिसाब लिखूं।
दर्द उठा तो लिख लेते हैं,
बेमोल हैं फिर भी बिक लेते हैं।
जर्जर ईंटें दहलीज़ है सूनी,
बेज़ार हैं फिर भी दिख लेते हैं।
शहनाई का साज़ है रोता,
बस जा दिल में अज़ाब लिखूं।
दर्द कहीं तू मिल जा अबकी,
जी लूं तुझको बेहिसाब लिखूं।
तू भी तो टूटा ही होगा,
तन्हां हो जी भर रोता होगा।
चराग़ बुझे सूना सा आँगन,
अंधियारा भी कुछ कहता होगा।
तेरी अंजुमन में आ बैठूं,
तुझको अजब आवाज़ लिखूं।
दर्द कहीं तू मिल जा अबकी,
जी लूं तुझको बेहिसाब लिखूं।
अनुराग बाजपेई (प्रेम)
पुत्र स्व०श्री अमरेश बाजपेई
एवं स्व०श्री मृदुला बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
८१२६८२२२०२
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