मंच को नमन
विषय : मृगतृष्णा
विधा : कविता
जाने मन क्यूँ भाग रहा
उन घनघोर अँधेरे में..
जहाँ घूम रही कस्तूरी मृग
मृगतृष्णा का बवंडर लिए..
जाने क्या यह ढूंढ़ रही हैं
गहरी काली परछाई में..
हैं आभास मुझको भी यह
मात्र यह एक छलावा हैं..
फ़िर भी दिल नहीं मान रहा
हैं डूब रहा मन धीरे - धीरे मृगतृष्णा की गहराइयों में..
जाने क्यूँ.... ना जाने क्यूँ..... !!
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शालिनी कुमारी
शिक्षिका
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार )
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