कवि गौरव मिश्र तन्हा जी द्वारा रचना

आपकी सेवा में एक कुंडलियां छंद 
     जय सिया राम

शीतल पुरवाई चले, इस तन को सुख देत।
सियाराम का नाम ही, पीड़ा सब हर लेत।।
पीड़ा सब हर लेत, मोह से पार लगावै।
छूटे जग से बंधन, न इस जग में दुख पावै।।
इस जग से उस लोक, की सीढ़ी है बस राम।
सत करमों से यहां, मिलत है राम का धाम।।
गौरव मिश्र तन्हा

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