कवयित्री मीनू मीनल जी द्वारा 'माँ' विषय पर रचना

जय मा स्कंदमाता

 हे मांँ दुर्गे 

मैं शिखा दीये की दीपक तले अंँधेरा हूंँ
मैं शिखा शिखर की सबसे दूर बसेरा हूंँ 

जिसकी जब जैसी जरूरत रही अंँधेरा दूर किया मैंने 
शिखर पर जब छाया तो मुंँह मोड़ लिया उसने 

हरदम ऐसा होता रहता ,छलती जाती हूंँ मैं 
अपना जीवन मैं भी चाहूँ निष्प्राण होती हूंँ मैं 

हे माँ दुर्गे! तुम्हीं बता ,ऐसी छलिया दुनिया क्यों ?
मैं भी क्या वैसे  बन जाऊंँ, उम्मीदों पर रहती क्यों ?

अमृतमय कर दो मांँ सबको, पीड़ा मेरी दूर करो 
शिखर पर हो दीए की लौ ,ऐसा मुझको भी वर दो।

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मीनू मीनल

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