कवि चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र" जी द्वारा रचना “पालघर से करौली वाया हाथरस , बलरामपुर"

शीर्षक-  *पालघर से करौली वाया हाथरस , बलरामपुर*.....

करौली बलरामपुर में जो मौन हैं 

पूंछो पूंछो वो दानव कौन हैं

ओढ़े हुए व्याघ्र चर्म श्वान हैं

ऐसी घटनाओं में हाथ जिनका 
क्या वो इंसान हैं?

साधुओं पूजारियों पर हो रहे घात निर्मम

गढ़चिरौली पालघर के स्वरों का हो रहा दमन निर्मम

धिक्कार है ऐसे दोमुंहे नेताओं को

शैतानी पापी पशुता भरी आत्माओं को

धिक्कार है उनको जो असहायों पर कर रहे प्रहार

शर्म न आती उनको करते घिनौने  निर्लज्ज वार 

जन जन के मन में उठ रहा क्रोधानल प्रचंड

पापियों आताताइयों को अब देना ही होगा मृत्यु दंड

अरे ओ मीडिया वालों तुम तो न्यायोचित बात कहो

दलाली टीआरपी में मत उलझो जनता की बात कहो

यदि सब मुद्राओं से बिक जायेंगे

फिर मही पर परशुराम आ जायेंगे

परशुराम धरेंगे धैर्य नहीं ....

बिना प्रलय तब ख़ैर नहीं....
             
        चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
          अहमदाबाद , गुजरात

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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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