बदलाव मंच को नमन
शीर्षक _ गुज़ारिश
हर ग़म में भी मस्कराऊ मैं
मुझको ऐसी आदत देदे ।
हर गलत को खुलके रोकू मैं
मुझको ऐसी बगावत देदे।
बदल जाए मेरा वक़्त भी
मुझको ऐसी आहट देदे ।
खुद से ही बढ़ती जाए जो
मुझको ऐसी चाहत देदे ।
रूठा हुआ है मुझसे जो
उस खुदा की बरकत देदे ।
भरी हो जिसमे अपनों की खुशियां
ऐसा मुझको पनघट देदे ।
तुझसे है गुज़ारिश सुन ज़िन्दगी
मुझको थोड़ी फुरसत देदे ।
ना दे सके इतना भी तो
मुझको खुद से रुखसत देदे ।
पूजा परमार सिसोदिया
आगरा ( उत्तर प्रदेश )
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