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द्रोपदी का आर्तनाद
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उठो द्रोपदी अब,
खड्ग उठाओ!
गोविंद कब तक,
अब चीर बचाएंगे?
दुर्गा रणचंडी का,
रोन्द्र रूप जगाओ!
दुःशासन रक्तबीज से,
दिनोदिन बढ़ते जाएंगे!
,चूड़ी,पायल,बिंदी,
और महावर छोड़ो!
कबतक कृष्ण बचाएंगे?
अब खड्ग- तलवार,
उठा लो तुम!
कर डालो स्वयं,
संहार दुःशासन का!
अपना चीर स्वयं,
बचा लो तुम !
पहचानो दुर्गा काली सी ,
शक्ति को !निज रक्षा का,
खुद भार उठा लो तुम!
नेत्र सहित धृतराष्ट्र,
विवश नेत्रविहीन !
बैठ सिंहासन पर,
विवश पुरुषार्थहीन!
देश की कुलवधु को,
देखते चिरविहीन!
तेरे स्त्रीत्व के वेदना को,
कौन समझें यहाँ!
द्रोणाचार्य और भीष्मपितामह,
बैठे मौन जहाँ!
नेत्रों को बंद मदद को,
कबतक कृष्ण बुलाओगी ?
न्याय पर विजयी,
अन्याय देकर धन जहाँ !
पाप की नगरी में किससे,
न्याय की आस लगाओगी !
सीता की रक्षा में राम,
अब वानर सेना नही लाएंगे!
अब तो घर-घर कथा महाभारत की,
रामराज्य हम कहाँ पाएंगे?
अब तो हर घर मे धृतराष्ट्र,
दशरथ से पिता कहाँ से लाएंगे?
अब तो घर-घर मे दुःशासन,
लक्ष्मण से देवर कहीँ नही!
अपनें वस्त्र संभालो खुद ही,
पहन केशरिया ताना- बाना!
अब हथियार उठा लो तुम,
कोमलता को त्याग कर तन,
अब पाषाण बना लो तुम!
हर घर मे दुःशासन,रावण बैठा,
कबतक गोविंद गोहराओगी!
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
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