कवयित्री डॉ भावना एन.सावलिया जी द्वारा रचना ‘त्याग - समर्पण के महात्मा हो’

- *'बदलाव मंच' टीम*

पिता पर कविता 
शीर्षक :त्याग - समर्पण के महात्मा हो !

पिता आप कितने 
त्याग - समर्पण के महात्मा हो !

खुद के लिए नहीं ,
हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं ।
स्वयं मुश्किलों की पगड़ी 
सज के हमको सुख देते हैं ।
छोटी - बड़ी कड़वाहट न जाने
कैसे दिल में जड लेते हैं !
दर्द का घूंट पीकर जीवन 
खुशियों के तरानों से भर देते हैं ।।
पिता आप कितने 
त्याग-समर्पण के महात्मा हो !! 

जीवन संघर्षों के सागर में
स्वयं गोताखोर बनते हैं ,
अनमोल मोतियों से 
हमारा जीवन खुद सजाते हैं ।
आपका आजीवन परिश्रम 
संतानों को समर्पित करते हैं ।
जीवनभर की कमाई 
परिवार को अर्पित करते हैं ।।
पिता आप कितने
 त्याग-समर्पण के महात्मा हो ! 

पिता खुद की दुःख पीड़ा की 
चिंता या परवाह नहीं करते हैं,
परिवार या बेटे की चिंता को
अपना जीवन कर्म बनाते हैं ।
जिम्मेदारी अपनी ही समझ के 
पिता का दायित्व निभाते हैं ,
बेटी और पिता का सारा जीवन 
पारस्पर्य कलेजा बनते हैं।।
पिता आप कितने 
त्याग - समर्पण के महात्मा हो ! 

पिता में अद्भूत शक्ति है 
घर के चेहरें पढ़ने की ,
हरेक दिल के सुख दुःख,
प्रेम भाव पहचानने की ।
हर पल कोशिशें रहती हैं 
सबको प्रसन्न रखने की ,
फिर भी जीवनांत नहीं सोचा 
कभी भी किसी से अपेक्षा रखने की ।।
पिता आप कितने
त्याग- समर्पण के महात्मा हो ! 

नैन के नभ में सजाते  
तारा - मण्डल के साज हैं ,
बेटी पापा के प्राण हैं ,
खुशी है ,तारें ,चंदा, सूरज है।
पिता बेटी की हर खुशियों के
सिर का अमूल्य ताज है ,
बेटी की उन्नति-प्रगति 
पिता के जीवन नाज है ।।
पिता आप कितने
त्याग - समर्पण के महात्मा हो ! 

सिर पर पिता के प्रेम भरे 
आशीर्वाद बरसते हैं ,
बेटी की बिदाई के विचार से 
नैन बादल बरसते हैं ।
दिल रोता है पर किसी को
पता नहीं लगने देते हैं ,
घर में आने के साथ ही 
पिता की आंखें बेटी को ढूंढती हैं ।।
पिता आप कितने
त्याग- समर्पण के महात्मा हो !

 डॉ भावना एन.सावलिया 
राजकोट ( गुजरात )

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