सादर नमन बदलाव मंच
साप्ताहिक====प्रतियोगिता
विषय-दीपोत्सव,विधा-काव्य
दिनांक - ११ / ११/ २०२०
======शीर्षक==========
शुभ सीख देती यहीं दिवाली
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अगणित दीपों से ज्योतित कर ,
तम से करती घर-आंगन खाली।
निज अन्तः उजियार करो नर ,
शुभ सीख देती यही दिवाली।
नियत समयसे प्रतिवर्ष शुचि आलोक फैलाती।
शान से जलती जबतक रहता है तेल - बाती ।
तेल खत्म होते ही खुद आपोआप बुझ जाती ।
जैसे छोड़ देता मानव जीवन से स्वांस संघाती ।
कहाँ भरोस जीवन का पल भर ,
विश्व-बाग का बन जा माली।
निज अन्तः उजियार करो नर,
शुभ सीख देती यही दिवाली।
त्याग कर सत्य पथ तम -हम भरना नहीं ।
सदा परस्पर प्यार हो परव्देष करना नहीं।
सत्कर्म यदि न बन पडे़ विकर्म कभी करना नहीं।
दृढ़ अटल हो सत्य में मिथ्या में पग धरना नहीं।
मन,कर्म,वचन की जागृत हो ,
करना है हरदम रखवाली ।
निज अन्तः उजियार करो नर,
शुभ सीख देती यहीं दिवाली।
झूठ ,बुराई, दानवता तज मानवता सिखलाती।
अवगुणछोड़ रहसदगुण संग उत्तम भाव जगाती।
रहोअभयअविनाशी के संग सबको सजग बनाती।
अमूल्य मानव जीवन की यहीं अमिट है थाती।
बनो राम रम सदभावों बिच ,
फैलाओ शुभता की लाली।
निज अन्तः उजियार करो नर,
शुभ सीख देती यहीं दिवाली।
शुभ सीख ले दिवालीसे सबकुछ हम पा सकते है।
गतगौरव भारत का पुनः प्यार से ला सकते है।
जन्म-जीवन नर का सचमुच धन्य बना सकते है।
नर से नारायण की पदवी को भी पा सकते है।
छवि आलोक का "बाबूराम कवि"
पीटो नहीं कभी पर पै ताली ।
निज अन्तः उजियार करो नर ,
शुभ सीख देती यहीं दिवाली ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)
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